ऐ राही राहगुज़र ...,
उस पथ पे तू जो चल ,
जिस पथ पे हो सवेरा ,
और तेरी खुशियों का बसेरा |
क्यों सोचता है तू इतना ,
कौन अपना कौन पराया ,
ये रिश्ते है इतने लगते सस्ते ,
जो बनकर है यु फिर टूट जाते |
जब खोना ही है उनको ,
तो क्यों सपने है ये दिखाते ,
अपना सा हमें बनाके ,
गैरों की तरह है छोर जाते |
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